• वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडे‚ न तु खलु तयोर्ज्ञाने शक्तिं करोत्यपहन्ति वा। भवति हि पुनर्भूयान्भेदः फलं प्रति तद्यथा‚ प्रभवति शुचिर्बिम्बग्राहे मणिर्न मृदादयः।।       अधीतिबोधाचरणप्रचारणैः दशाश्चतस्रः प्रणयन्नुपाधिभिः। चतुर्दशत्वं कृतवान्कुतः स्वयं न वेद्यि विद्यासु चतुर्दशस्वयम्।।       देवो रूष्टे गुरुस्त्राता, गुरो: रुष्टे न कश्चन। गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता, गुरुस्त्राता न संशयः।।       अनागतविधाता च, प्रत्युत्पन्नगतिस्तथाl द्वावेतौ सुखमेवेते, यद्भविष्यो विनश्यतिll      
    DIRECTOR
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    Name : NEELOO KUMARI
    SECRETARY
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    Name : TEJWANT SINGH P.D.S (UPPCS-1994)
    मङ्गलाचरण
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    Dr.RAJ KUMAR
    ( INTERNAL AUDITOR )

    सानन्दमानन्दवने वसन्तम् आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।।
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    संदेश

    भारत में आज संस्कृत की स्थिति अपने ही घर में पराई बेटी-सी है, जिसे विदेशी तो सर आँखों पर बिठा रहे हैं, पर हम हैं कि उसे घोर उपेक्षा की शिकार बना रहे हैं। भारत में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए हमें अपने स्तर पर इस भाषा को अपनाना होगा। जब तक हम स्वयं संस्कृत को नहीं अपनाएँगे। तब तक इस संबंध में विधेयक या कानून के रूप में किसी चमत्कार की उम्मीद करना हमारी सबसे बड़ी मूर्खता होगी। यदि आज समय रहते हम नहीं जागे तो कल को हमारी आने वाली पीढियाँ हमसे यही पूछेंगी कि आखिर यह संस्कृत क्या है और इसे किसने बनाया था?
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    CO-DIRECTOR
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    Name : DR. RAJ KUMAR MISHRA
    Assistant professor, Department of Sahitya, central sanskrit university, Vedavyas Compus, Balahar, Himachal Pradesh
    विशिष्टशास्त्रप्रशिक्षण
    लघुसिद्धान्तकौमुदी

    प्रो. भगवतशरण शुक्ल, आचार्य, व्याकरण विभाग, संस्कृतविद्याधर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत।