SHAURYAM RESEARCH INSTITUTE

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दर्शन

  //   वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडे‚ न तु खलु तयोर्ज्ञाने शक्तिं करोत्यपहन्ति वा। भवति हि पुनर्भूयान्भेदः फलं प्रति तद्यथा‚ प्रभवति शुचिर्बिम्बग्राहे मणिर्न मृदादयः।।     //   अधीतिबोधाचरणप्रचारणैः दशाश्चतस्रः प्रणयन्नुपाधिभिः। चतुर्दशत्वं कृतवान्कुतः स्वयं न वेद्यि विद्यासु चतुर्दशस्वयम्।।     //   देवो रूष्टे गुरुस्त्राता, गुरो: रुष्टे न कश्चन। गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता, गुरुस्त्राता न संशयः।।     //   अनागतविधाता च, प्रत्युत्पन्नगतिस्तथाl द्वावेतौ सुखमेवेते, यद्भविष्यो विनश्यतिll     //   ʺअभ्याससारिणी विद्या " विद्या अभ्यास से आती हैं।     //   ʺअनभ्यासे विषं शास्त्रम्।।‘ अभ्यास न करने पर शास्त्र विष के तुल्य हैं।  

दर्शन

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1 श्रीविष्णुसहस्रनामस्त्रोत्रम् दर्शन गीता प्रेस गीता प्रेस गोरखपुर 00 32 Book